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बाँधा था विधु को किसने<br />
इन काली जंजीरों से<br />
मणि वाले फँणियों फणियों का मुख<br />
क्यों भरा हुआ हीरों से?<br />
<br />
विद्रुम सीपी सम्पुट में<br />
मोती के दाने कैसे<br />
हैं हंस न, शुक यह, फिर क्योक्यों<br />
चुगने की मुद्रा ऐसे?<br />
<br />
<br />
मुख-कमल समीप सजे थे<br />
दो किसलय से पुरइन के<br />
जलबिन्दु सदृश ठहरे कब<br />
उन कानों में दुख किनके?<br />
ज्यों-ज्यों उलझन बढ़ती थी<br />
बस शान्ति विहँसती बैठी<br />
उस बन्धन में सुख बँधता<br />
करुणा रहती थी ऐंठी।<br />
<br />
मुख चन्द्र हृदय में होता<br />
श्रम सीकर सदृश नखत से<br />
अम्बर पट भींगा भीगा होता।<br />
<br />
सोयेगी कभी न वैसी<br />
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