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हीरे-सा हृदय हमारा<br />
कुचला शिरिष शिरीष कोमल ने<br />
हिमशीतल प्रणय अनल बन<br />
अब लगा विरह से जलने।<br />
गिनता अम्बर के तारे।<br />
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निष्ठर निष्ठुर ! यह क्या छिप जाना?<br />
मेरा भी कोई होगा<br />
प्रत्याशा विरह-निशा की<br />
मणि दीप लिये निज कर में<br />
पथ दिखलाने को आये<br />
वह पावक पुंज हुआ आवअब <br />
किरनों की लट बिखराये।<br />
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