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यदि दो घड़ियों का जीवन<br />
कोमल वृन्तों में बीते<br />
कुछ हानि तुम्हारी हैं है क्या<br />
चुपचाप चू पड़े जीते!<br />
<br />
पट पर कुछ अस्फुट रेखा<br />
सब लिखी पड़ी रह जाती <br />
सुख -दुख मय जीवन रेखा।<br />
<br />
दुख -सुख में उठता गिरता<br />
संसार तिरोहित होगा<br />
मुड़कर न कभी देखेगा<br />
मानस जीवन वेदी पर<br />
परिणय हो विरह मिलन का <br />
दुख -सुख दोनों नाचेंगे<br />
हैं खेल आँख का मन का।<br />
<br />
<br />
लिपटे सोते थे मन में<br />
सुख -दुख दोनों ही ऐसे<br />
चन्द्रिका अँधेरी मिलती<br />
मालती कुंज में जैसे।<br />
जैसे बिजली हो घन में।<br />
<br />
उनका सुख नाच उठा हैंहै<br />
यह दुख द्रुम दल हिलने से<br />
ऋंगार चमकता उनका<br />
<br />
हो उदासीन दोनों से <br />
दुख -सुख से मेल कराये<br />
ममता की हानि उठाकर<br />
दो रुठे रूठे हुए मनाये।<br />
<br />
चढ़ जाय अनन्त गगन पर<br />
<br />
उच्छ्वास और आँसू में<br />
विश्राम थका सोता हैंहै<br />
रोई आँखों में निद्रा<br />
बनकर सपना होता हैं।है।<br />
<br />
निशि, सो जावें जब उर में<br />
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