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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
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पढ़ लेते हैं
लोग
टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं
से लिखी
तक़दीर

पढ़ लेते हैं चमकीले रंगों
से बनें
बेतरतीब गद-मद
एक दुसरे में उलझे हुए चित्र

पढ़ लेते हैं
सफ़ेद कागज़
पर उतारे हुए
काले शब्दों
के अहसास ,
बिम्ब और प्रतिबिम्ब

लेकिन
मुझे कोई नहीं पढ़ता
क्योंकि मुझे कभी
लिखा नहीं गया
मेरा चित्र
कोई नहीं बनाता
मुझे कोई नहीं पढ़ता

मैं मन हूँ...
मैं भविष्य जैसा कठिन तो नहीं ??
</poem>
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