भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तुम खिल उठती हो
जो भी हो मुझे
वैसे "शाहजहाँ " के अलावा ये कोई
नहीं जनता की
“ताज महल ” याद कर लेते हैं
बाकि सब बेजान समझ कर
ठोकर मरते मारते रहते हैं
केवल कुछ मुम्ताज़ों को ही
हम पर तरस आता है