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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं<br>
तुझे ए ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं।<br><br>
मेरी नजरें भी ऐसे काफ़िरों की जान ओ ईमाँ हैं<br>
निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं। <br><br>
जिसे कहती दुनिया कामयाबी वाय नादानी<br>उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं।<br>
निगाहे-बादागूँ, यूँ तो तेरी बातों का क्या कहना <br>तेरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं।<br>
तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में<br>
उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं<br><br>
हयाते-इश्क़ का इक-इक नफ़स जामे-शहादत है<br>वो जाने-नाज़बरदाराँ, कोई आसान लेते हैं।<br>
हमआहंगी में भी इक चासनी है इख़्तलाफ़ों की<br>मेरी बातें ब‍उनवाने-दिगर वो मान लेते हैं।<br>
तेरी मक़बूलियत की बज्‍हे-वाहिद तेरी रम्ज़ीयत<br>कि उसको मानते ही कब हैं जिसको जान लेते हैं।<br>
अब इसको कुफ़्र माने या बलन्दी-ए-नज़र जानें<br>ख़ुदा-ए-दोजहाँ को देके हम इन्सान लेते हैं।<br>
जिसे सूरत बताते हैं, पता देती है सीरत का<br>
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