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{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
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<poem>
इतने बड़े आकाश में
कोई भी खो सकता था
मैं भी खो गया

और एक बार तो ऐसा लगा
मैं उसका एक तारा बन गया।
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