गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
चौथी भूख / सुमित्रानंदन पंत
3 bytes added
,
08:08, 4 जून 2010
तीसरी रे भूख आत्मा की गहन!
इंद्रियों की देह से ज्यों है
पर
परे
मन
मनो जग से परे त्यों आत्मा चिरंतन
जहाँ मुक्ति विराजती
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,311
edits