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कभी-कभी / मुकेश मानस

159 bytes added, 06:18, 6 जून 2010
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'''कभी-कभी'''
 
आज फिर
गरज रहे हैं बादल
बरस रहा है पानी
तरस रहा हूं हूँ मैं
दो चार बूंदों के लिए
गरजेंगे बादल
बरसेगा पानी
और भीग जाउंगा जाऊँगा मैं भी
बरसात के पानी में
बरस जाऊंगा जाऊँगा मैं भी
एक दिन
 रचनाकाल : 1994
<poem>
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