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Kavita Kosh से
बिछी बर्फ़ के चंदन तन की
नदियों में गलते देखा है ।
लहक उठा यह
नीला सरवर
अंग-अंग के पोर-पोर की
पीड़ा में हँसते देखा है ।
जाग उठा
अनुशासित यौवन
देश के वैभव को
पलते देखा है ।
युंग फ्राड ने
आसमान में
निष्फल सपनों को
भूतल पर फलते देखा है ।
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