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हाइकु / कमलेश भट्ट 'कमल'

10 bytes added, 15:29, 8 जून 2010
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मुँह चिढ़ाती लम्बे चौड़े पुल को सूखती नदी, ऊब चले है वर्षा की प्रतीक्षा में पैड़-पौधे भी,!
 ऊब चले है वर्षा की प्रतीक्षा में पैड़-पौधे भी! पीने लगा है धरती का भी पानी प्यासा सूरज, ! 
निकली नहीं कन्जूस बादलों से एक भी बून्द,
तरस गये पहचान को खुद सावन-भादौ में।