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औरत / कैफ़ी आज़मी

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|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
|संग्रह=
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<poem>
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
कल्बक़ल्ब-ए-माहौल <ref>मर्मस्थल, ह्रदय</ref> में लरज़ाँ लर्ज़ां<ref>कंपित</ref> शरर-ए-ज़ंग जंग<ref>युद्ध की चिंगारियाँ</ref> हैं आजहौसले वक़्त के और ज़ीस्त <ref>जीवन</ref> के यक -रंग हैं आजआबगीनों <ref>शराब की बोतल</ref> में तपां तपाँ<ref>धड़कन</ref> वलवला-ए-संग <ref>पत्थर की उमंग</ref> हैं आजहुस्न और इश्क इश्क़ हम -आवाज़ व हमआहंग <ref>एक स्वर</ref> ओ हम-आहंगल<ref>एक लय रखनेवाले</ref> हैं आजजिसमें जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िन्दगी जहद तेरे क़दमों में है सब्र के काबू में नहींनब्ज़फ़िरदौस-ए-हस्ती तमद्दुन<ref>सभ्यता, शहरों का लहू कांपते आँसू में नहींबाग</ref> की बहार उड़ने खुलने में तेरी नज़रों पे है नक़्हत ख़मतहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार<ref>धुरी</ref> तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-गेसू में नहींनफ़्स-ओ-किरदार<ref>आकांक्षा का पालना</ref> ज़न्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहींता-बा-कै<ref>कहाँ तक, कब तक, ताकि</ref> गिर्द तिरे वहम ओ तअय्युन<ref>निश्चय करना, आस्तित्व</ref> का हिसार<ref>नगर का परकोटा, क़िला</ref> उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत<ref>तन्हाई की महफ़िल</ref> से निकलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
गोशेतू कि बे-गोशे में सुलगती जान खिलौनों से बहल जाती है चिता तेरे लियेफ़र्ज़ का भेस बदलती तपती साँसों की हरारत<ref>तपिश</ref> से पिघल जाती है क़ज़ा तेरे लियेक़हर पाँव जिस राह में रखती है तेरी फिसल जाती है बन के सीमाब<ref>पारा</ref> हर इक नर्म अदा तेरे लियेज़हर ही ज़हर ज़र्फ़<ref>पात्र</ref> में ढल जाती है दुनिया की हवा तेरे लियेरुत बदल डाल अगर फूलना फलना ज़ीस्त<ref>जीवन</ref> के आहनी<ref>लोहा</ref> साँचे में भी ढलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही ज़िंदगी जोहद<ref>संघर्ष</ref> में है सब्र के क़ाबू में नहींतुझ नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहींतू हक़ीक़त भी उड़ने खुलने में है दिलचस्प कहानी ही निकहत<ref>महक</ref> ख़म-ए-गेसू<ref>बालों का घुमाव</ref> में नहींतेरी हस्ती भी है जन्नत इक चीज़ जवानी ही और है जो मर्द के पहलू में नहींअपनी तारीख़ का उनवान बदलना उस की आज़ाद रविश<ref>रंग-ढंग</ref> पर भी मचलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म के बुत बन्दगोशे-गोशे<ref>कोने-क़दामत से निकलकोने</ref> में सुलगती है चिता तेरे लिए ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकलफ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा<ref>मृत्यु</ref> तेरे लिए नफ़स के खींचे हुये हल्क़ा-ए-अज़मत से निकलक़हर<ref>प्रलय, विनाश</ref> है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए क़ैद बन जाये मुहब्बत तो मुहब्बत से निकलज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ ये अज़्म शिकन दग़दग़ा-ए-पन्द भी तोड़क़द्र अब तक तेरी तारीख़<ref>इतिहास</ref> ने जानी ही नहीं तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वह सौगंध तुझ में शोले भी तोड़हैं बस अश्क-फ़िशानी<ref>आँसू बहाना</ref> ही नहीं तौक़ यह तू हक़ीक़त भी है ज़मर्रूद का गुल बन्द भी तोड़दिलचस्प कहानी ही नहीं तोड़ पैमाना-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द तेरी हस्ती भी तोड़है इक चीज़ जवानी ही नहीं बन के तूफ़ान छलकना है उबलना अपनी तारीख़ का उनवान<ref>शीर्षक</ref> बदलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत<ref>प्राचीनता के बन्धन</ref> से निकल ज़ोफ़-ए-इशरत<ref>ऐश्वर्य की दुर्बलता</ref> से निकल वहम-ए-नज़ाकत<ref>कोमलता का भ्रम</ref> से निकल नफ़्स<ref>इच्छा, कामना</ref> के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत<ref>महानता का घेरा</ref> से निकल क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल राह का ख़ार<ref>काँटा</ref> ही क्या गुल<ref>फूल</ref> भी कुचलना है तुझे उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे तोड़ ये अज़्म-शिकन<ref>संकल्प भंग करने वाला</ref> दग़दग़ा-ए-पंद<ref>उपदेश की आशंका</ref> भी तोड़ तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद<ref>कसम</ref> भी तोड़ तौक़<ref>हार, हँसली</ref> ये भी है ज़मुर्रद<ref>पन्ना</ref> का गुलू-बंद भी तोड़ तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद<ref>समझदार पुरुषों के मापदंड</ref> भी तोड़ बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे तू फ़लातून <ref>प्लेटो</ref> ओ अरस्तू है तू ज़ोहरा परवीनज़ेहरा<ref>शुक्र ग्रह (सुन्दरता का प्रतीक)</ref> परवीं<ref>कृतिका नक्षत्र (सुन्दरता का प्रतीक)</ref> तेरे क़ब्ज़े में ग़रदूँ तेरी है गर्दूं<ref>आकाश</ref> तिरी ठोकर में ज़मींहाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर <ref>भाग्य के चरण</ref> से ज़बींजबीं<ref>माथा</ref> मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहींलड़खड़ाएगी कहाँ तक कि संभलना सँभलना है तुझेउठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे</poem>{{KKMeaning}}
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