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{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्रभानु भारद्वाज
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नीद की इक किताब रखना;
करवटों का हिसाब रखना।

पत्थरों का मिजाज़ पढ़ना,
हाथ में फ़िर गुलाब रखना।

हर डगर में सवाल होंगे,
हर कदम पर जवाब रखना।

धड़कनों में जूनून कोई,
साँस में इन्कलाब रखना।

आग रखना जली जिगर में,
आँख झेलम चनाब रखना।

वक्त सबको सिखा रहा है,
बस जड़ों में तेजाब रखना।

छोड़ अब 'भारद्वाज' अपने,
चेहरे पर नकाब रखना।
</poem>
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