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{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्रभानु भारद्वाज
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<poem>
चल दिया कोई सपने दिखा प्यार के;
सूझता है न अब कुछ सिवा प्यार के।

आह आंसू तड़प हिचकियाँ सिसकियाँ,
दर्द बदले में केवल मिला प्यार के।

क्यों न जाने ज़माने की बदली नज़र,
जबसे खुद को हवाले किया प्यार के।

मोतियों की लड़ॊं से सजी हो भले,
अर्थ क्या ज़िन्दगी का बिना प्यार के।

तुमको कांटों भरी सब मिलीं हों भले,
फूल राहों में सब की बिछा प्यार के।

जो घृणा के अंधेरों में भटके हुए,
कुछ उजाले भी उनको दिखा प्यार के।

मोल अनमोल था जिस 'भरद्वाज' का,
मुफ़्त बाजार में वह बिका प्यार के।
</poem>
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