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Kavita Kosh से
ढ़ूंढता रहा खुद को दिन रात ढूंढ नहीं न पाया।
छोटा करे दे रातों की लम्बाई भी गहरी नीन्द
छीन ही लिया नदी का नदीपन प्यासे बान्धो ने