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|रचनाकार= उदयप्रकाश|संग्रह= एक भाषा हुआ करती है / उदय प्रकाश
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वह चितकबरा
उसकी अधमुंदी अधमुँदी आंखों में निस्पृहता है अज़ब
किसी संत की
या फ़िर किसी ड्रग-एडिक्ट की
तीखे तीख़े शोर , तेज़ रफ़्तार , आपाधापी और उन्माद में
उसके दोनों ओर चलता रहता है
अनंत ट्रैफ़िक
कभी-कभी बस वह अपनी गर्दन हिलाता है
किसी मक्खी के बैठने पर
 उसके सींगों पर टिकी नगर सभ्यता कांपती काँपती है
उसके सींगों पर टिका आकाश थोड़ा-सा डगमगाता है
अपनी स्मृतियों की घास को चबाते हुए
उसके जबड़े से बाहर कभी-कभी टपकता है समय
 
झाग की तरह ।
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