भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत; पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव-वय के अलियों का गुंजन!
रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर
:उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन
:करते मधु के बन वन में गुंजन!
कोमल कलियों से लाल-लाल,
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल,