{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत; पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत
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<poem>
बनवन-बनवन, उपवन--
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव-वय के अलियों का गुंजन!
रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर
:उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन
:करते मधु के बन वन में गुंजन!
बन वन के विटपों की डाल-डाल
कोमल कलियों से लाल-लाल,
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल,