भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वत एम जमाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> ऊंचाई से सारे मंजर कैसे…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ऊंचाई से सारे मंजर कैसे लगते हैं
अन्तरिक्ष से ये कच्चे घर कैसे लगते हैं।

आप बाढ़ के माहिर हैं, बतलायें, ऊपर से
बेबस, भूखे, नंगे, बेघर कैसे लगते हैं।

मुखिया को जब मिली जमानत उसने ये पूछा
अब बस्ती वालों के तेवर कैसे लगते हैं।

रामकली, दो दिन की दुल्हन, इस उलझन में है
ऊंची जात के ठाकुर, देवर कैसे लगते हैं!

रामलाल से ज़मींदार ने हंसकर फरमाया
कहिये, चकबंदी के बंजर कैसे लगते हैं?

कर्जा, कुर्की, हवालात जब झेल चुके, जाना
दस्तावेज़ के काले अक्षर कैसे लगते हैं</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits