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{{KKRachna
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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एक ही आसमान सदियों से
चंद ही खानदान सदियों से

धर्म, कानून और तकरीरें
चल रही है दुकान सदियों से

काफिले आज तक पड़ाव में हैं
इतनी लम्बी थकान, सदियों से !

सच, शराफत, लिहाज़, पाबंदी
है न सांसत में जान सदियों से

कोई बोले अगर तो क्या बोले
बंद हैं सारे कान सदियों से

कारनामे नजर नहीं आते
उल्टे सीधे बयान सदियों से

फायदा देखिये न दांतों का
क़ैद में है जबान सदियों से

झूठ, अफवाहें हर तरफ सर्वत
भर रहे हैं उडान सदियों से </poem>
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