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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वत एम जमाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> एक एक जहन पर वही सवाल है …
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{{KKRachna
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
}}
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एक एक जहन पर वही सवाल है
लहू लहू में आज फिर उबाल है
इमारतों में बसने वाले बस गए
मगर वो जिसके हाथ में कुदाल है ?
उजाले बाँटने की धुन तो आजकल
थकन से चूर चूर है, निढाल है
तरक्कियां तुम्हारे पास हैं तो हैं
हमारे पास भूख है, अकाल है
कलम का सौदा कीजिये, न चूकिए
सुना है कीमतों में फिर उछाल है
गरीब मिट गये तो ठीक होगा सब
अमीरी इस विचार पर निहाल है
तुम्हारी कोशिशें कुछ और थीं, मगर
हम आदमी हैं, यह भी इक कमाल है </poem>
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|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
}}
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एक एक जहन पर वही सवाल है
लहू लहू में आज फिर उबाल है
इमारतों में बसने वाले बस गए
मगर वो जिसके हाथ में कुदाल है ?
उजाले बाँटने की धुन तो आजकल
थकन से चूर चूर है, निढाल है
तरक्कियां तुम्हारे पास हैं तो हैं
हमारे पास भूख है, अकाल है
कलम का सौदा कीजिये, न चूकिए
सुना है कीमतों में फिर उछाल है
गरीब मिट गये तो ठीक होगा सब
अमीरी इस विचार पर निहाल है
तुम्हारी कोशिशें कुछ और थीं, मगर
हम आदमी हैं, यह भी इक कमाल है </poem>