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उसको शमशीर मिली ,जुर्रत-ए-इज़हार मुझे
तेरी महफ़िल की फ़ुसूँ-साज़ियाँ <ref>जादू/मायाजाल</ref> अल्लाह!अल्लाह !खेंच कर ले गई फिर लज़्ज़त-ए-आज़ार <ref>तकलीफ़ के मज़े</ref> मुझे
सुब्ह-ए-उम्मीद है आइना-ए-शाम-ए-हसरत
अल-अमान अल-हफ़ीज़ अपनों की करम-फ़र्मायी
बन गई राहत-ए-जां तोहमत-ए-अग़्यार <ref>दुश्मनों के आरोप</ref> मुझे
एक तस्वीर के दो रुख़ हैं ब-फ़ैज़-ए-ईमान
तवाफ़-ए-क़ाबा <ref>काबा की परिक्रमा</ref> हो कि वो हल्क़-ए-ज़ुन्नार मुझे
मैं ज़माने से ख़फ़ा ,दुनिया है मुझ से नालां
इम्तिहां हो गई ये फ़ितरत-ए-ख़ुद्दार मुझे
साग़र-ए-मय ना सही दुर्द-ए-तहे-जाम <ref>तलछट में बची शराब</ref> सही
तिश्ना लब यूँ तो न रख साक़ी-ए-ख़ुश्कार मुझे!
मंज़िल-ए-दर्द में वो गुज़री है मुझ पर ’सरवर’
अब कोई मरहला <ref>मंज़िल</ref> लगता नहीं दुश्वार मुझे 
</poem>
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