भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
या गिनने वाले करते हाहाकार ।
सारी रातों रातें है-एक, दो, तीन, चार-!
मेरे आँसू की भरीं उभय जब प्याली,
ब्रह्माण्ड कँपाती उस उद्दण्ड पवन पर,
तेरे मीठे गीतों का पूर पूरा लेखा
मैंने प्रकाश में लिखा सजीला देखा।
इन लोह-सीखचों की कठोर पाशों में
क्या भए भर देगी? बोलो निद्रित लाशों में?
Anonymous user