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लो, स्वर्ण-स्वर्ण अब सब भूधर!
पल में कोमल पड़, पिघल उठे
सुन्दर बन, जड़, निर्मम प्रस्थरप्रस्तर,
सब मन्त्र-मुग्ध हो, जड़ित हुए,
लहरों-से चित्रित लहरों पर!
::मानव जग में गिरि-कारा-सी
::गत-युग की संस्कृतियाँ दुर्धर
::वन्दी बंदी की हैं मानवता को
::रच देश-जाति की भित्ति अमर।
::ये डूबेंगी-सब डूबेंगी
::पा नव मानवता का विकाशविकास,
::हँस देगा स्वर्णिम वज्र-लौह
::छू मानव-आत्मा का प्रकाश!
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