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Kavita Kosh से
::भरती चेतना अमर प्रकाश,
::मुरझाए मानस-मुकुलों में
::पाती नव मानवता विकाशविकास!
मधु-प्रात! मुक्त नभ में सस्मित
नाचती धरित्री मुक्त-पाश!