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Kavita Kosh से
::वह विजन चाँदनी की घाटी
::छाई मृदु वन-तरु-गन्ध जहाँ,
::नीबू-आड़ू के मुकुलों लेके
::मद से मलयानिल लदा वहाँ!
सौरभ-श्लथ हो जाते तन-मन,