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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल / विजय वाते
}}
<poem>
सांस पर इख्तियार आ जाए,
वो अगर एक बार आ जाए |

वो शज़र सायादार आ जाए,
धूप का एतबार आ जाए|

कोई तो ढूढ़ लाये उस जैसा,
जिसको देखूं कि प्यार आ जाए|

अपने बच्चे ही जो मुक़ाबिल हों,
अपने हिस्से मे हार आ जाए|

अब हमें इंतज़ार करना है,
कूव्व्ते इंतज़ार आ जाए |</poem>