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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल / विजय वाते
}}
<poem>
जो बेईमान हुआ |
उसका सम्मान हुआ |

बेकार सत्य बोला,
नाहक अपमान हुआ |

इंसान हुआ आबं,
व्यर्थ गुमान हुआ|

रोटी मकान कपड़ा,
इतना सामान हुआ|

चाहा पढ़ें कसीदे,
दर्द बयान हुआ |</poem>