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मन रसखान हुआ / विजय वाते

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|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल / विजय वाते
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<poem>
तुझ पे कुर्बान हुआ,
मन रस खान हुआ|

जाना जब नाम तेरा,
खुद अपना ज्ञान हुआ|

आकार तीरे लैब पर,
ये गीत अज़ान हुआ|

उल्लेख तेरा जिसमें,
वो शेर दीवान हुआ|

तुझको चाहा भर था,
कितना तूफान हुआ |</poem>