भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
<poem>
बुनियादी हक हक़ ? झूठी बात,जलसे, नारे, घूसे, लात |।
विगलित मन अंधा चेतन,
मेरी तेरी सबकी बात|।
सूरज को भी नहीं पता,
निशा निरापद, अटल प्रभात|।
लंगड़े तर्क, दिलों मे फर्क,
तारों की कुंठित बारात।
पल भर चमके लुप्त हो गयेगए, जुगनू जैसी काली रात |।
सिस्टम ये बदलेंगी यारों
लंगडी, लूली, शिष्ट जमात |।</poem>