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|रचनाकार=विष्णु नागर
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<poem>
हमारे डिरेवर साहब के पास भी एक दिल है
उसके साहब होते हुए भी देखिए हमें ये बात मालूम पड़ गई
और दिल है तो जाहिर है कि मानता नहीं है
वे जब फुर्सत में रहते हैं तब तो वह बिल्‍कुल भी नहीं मानता

वे दिल लगा बैठे हैं सब्‍जी बेचनेवाली से
जो दरअसल दिल लगाने का सबसे सुरक्षित ठिकाना है
जिससे औरों ने भी आते-जाते दिल लगा रखा है

फिर उसका भी तो एक दिल है और
दिल है तो वह भी करमजला ऐसा कि मानता नहीं

वह भी शादीशुदा है और ये भी
वो कुछ जवान है और ये हो चुके हैं अधेड़
उसके भी दो बच्‍चे हैं और संयोग देखिए इनके भी दो हैं
उसके बच्‍चों को खेलाने ये अंकलजी बनकर अकसर चले जाते हैं
जब हम कहते हैं चलो
तो दिल को छोड़कर वहीं
हमारे साथ चल देते हैं

जब हमारी कार उसी तरफ से गुजरती है
तो जाते-जाते उसको ये एक बार और
जी भरकर देख लेना चाहते हैं

हमने एक दिन उनसे कहा कि भैयाजी जो करना हो
कार चलाने से पहले क्‍यों नहीं कर लेते
लेकिन ऐसी बातों का
पहले कब असर हुआ है जो अब होगा?

तो जी, वो दाहिनी तरफ देखते हैं और नाक की सीध में गाड़ी चलाते हैं
और जैसा कि सुन्‍दरियां अकसर किया करती हैं
वह कभी तो इनको भरपूर नजरों से देखती है
कभी बिल्‍कुल भी नहीं देखती
आखिर वह पतिव्रता भी तो है

खैर हम, वह खुद और हमारी कार अभी तक सुरक्षित है
लेकिन प्रेम में हादसे तो होते ही रहते हैं
बस गाड़ी का न हो, खयाल इसका रखना डिरेवरजी.
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