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Kavita Kosh से
पत्रिकाओं के जगत में चल नहीं पाती
खास लहए लहजे में बँधी अखबार की भाषा
इन प्रजा तन्त्रीय प्रजातन्त्रीय राजाओं की चाउखट चौखट परफूलताफूलती -फलती रही दरबार की भाषा
ये महानगरीय जीवन का करिश्मा है