भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धमाका / विष्णु नागर

2,882 bytes added, 07:27, 12 जून 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर }} <…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
}}
<poem>
यह धमाका उस तरह का नहीं होता कि उसके बाद चारों तरफ
लाशें बिछ जाएं, सनसनी फैल जाए, रोना-धोना मच जाए

यह धमाका परमाणु बम की तरह का भी नहीं होता
कि इंडिया करे तो अमेरिका आब्‍जैक्‍शन करे और उत्‍तरी कोरिया करे
तो दोनों मिलकर आब्‍जैक्‍शन करें

यह धमाका उस तरह का भी नहीं होता
कि पता चले कि यह तो पटाखे का था

यह धमाका गैस सिलेंडर के फटने जैसा भी नहीं होता
यह धमाका ऐसा भी नहीं होता जैसा आये दिन अखबार करते रहते हैं

यह धमाका किसी से भी, कभी भी, कहीं भी
अकसर बिना इरादे के हो जाता है

कई बार उसे लगता है कि धमाका होना अवश्‍यंभावी है लेकिन होना नहीं चाहिए
और जब उस समय नहीं होता तो धमाका करनेवाला भगवान का
लाख-लाख शुक्र मनाता है
कि उसने इज्‍जत बचा ली

और अगर यह धमाका बीस लोगों के बीच हो ही जाता है
तो धमाका करनेवाला खुद शर्मिन्‍दा महसूस करता है
मगर चकित होकर दूसरों को इस तरह देखता है कि
जैसे यह मैंने तो किया नहीं

फिर जैसे पकड़ा गया हो
वह दूसरों की नजरों में, खुद-ब-खुद थोड़ी देर के लिए गिर जाता है
और भगवान से प्रार्थना करता है कि उसे ऐसी शक्ति प्रदान करे कि
ऐसा कभी उसके साथ दुबारा न हो
और हो तो अकेले में हो, घर में हो, अपनों के बीच हो और उनके बीच
भी न हो तो बेहतर.
778
edits