भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर }} <…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
}}
<poem>
ताकतवर को कमजोर पर इतना गुस्सा आता है
कि उसका बस चले तो वह कमजोर की गर्दन मरोड़ दे
जबकि कमजोर अकसर कमजोर पर गुस्सा करके
अपने को और भी कमजोर करता रहता है
(ताकि ताकतवर को कमजोरों के ताकतवर
हो जाने का भय न रहे)
इतना कमजोर कि ताकतवर को ही
उस पर दया आ जाती है
कि कमजोर का इतना कमजोर होना भी ठीक नहीं
वरना ताकतवर कल अपनी ताकत किस पर दिखाएगा
इसलिए वह कमजोरों के सशक्तीकरण में लग जाता है.
{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
}}
<poem>
ताकतवर को कमजोर पर इतना गुस्सा आता है
कि उसका बस चले तो वह कमजोर की गर्दन मरोड़ दे
जबकि कमजोर अकसर कमजोर पर गुस्सा करके
अपने को और भी कमजोर करता रहता है
(ताकि ताकतवर को कमजोरों के ताकतवर
हो जाने का भय न रहे)
इतना कमजोर कि ताकतवर को ही
उस पर दया आ जाती है
कि कमजोर का इतना कमजोर होना भी ठीक नहीं
वरना ताकतवर कल अपनी ताकत किस पर दिखाएगा
इसलिए वह कमजोरों के सशक्तीकरण में लग जाता है.