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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> रात भर चाँद को य…
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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
इक विरह की अगन में सुलगते बदन
करवटों में ही मल्हार गाते रहे
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे
टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
बारहा तुम हमें याद आते रहे
कोहरे से लिपट कर धुँआ जब उठा
शौल में सिमटे दिन थरथराते रहे
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे
</poem>
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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
इक विरह की अगन में सुलगते बदन
करवटों में ही मल्हार गाते रहे
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे
टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
बारहा तुम हमें याद आते रहे
कोहरे से लिपट कर धुँआ जब उठा
शौल में सिमटे दिन थरथराते रहे
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे
</poem>