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नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= ग़ज़ल / विजय वाते }} {{KKCatGhazal}} <poem> यूँ रोन…
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|रचनाकार=विजय वाते
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यूँ रोने का कोई नतीज़ा नहीं
मगर दिल पे काबू किसी का नहीं

सही है कि दो और दो चार लेकिन
सरल ये गणित हमने सीखा नहीं

न हो कैफे-मस्ती न दीवानगी तो
वो मिल जाए ऐसा तरीका नहीं

सतह पर टटोले न डूबे न भीगे
ये शेरो-सुखन का तरीका नहीं है
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