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'''निर्वाण षडकम'''
'''श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित'''
<span class="upnishad_mantra">
ओ३म् शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभि स्रवन्तु नः॥
-यजु. ३६.१२
</span>
<span class="mantra_translation">
इस पूर्वोक्त मन्त्र से तीन बार आचमन करें.
</span>
मनसा परिक्रमा मन्त्र
ॐ प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः .
अस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे
दध्मः
</span>
पूर्व दिशा का ईशानं यह अग्नि देव है,
रक्षक है आदित्य, न तुलना, एकमेव है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हो,
तेरे विधान के न्याय-नियम, सब द्वेष शेष हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता
पितर इषवः . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम
वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/२
</span>
<span class="mantra_translation">
दिशि दक्षिण का ईशानं, अनुपम इन्द्र देव है,
रक्षक नियम-निबद्ध सहायक एकमेव है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकू
रक्षितान्नमिषवः . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम
वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/३
</span>
<span class="mantra_translation">
दिशि पश्चिम के ईशानं, अनुपम वरुण देव हैं,
इह इच्छाओं से करें विमुख, वे एकमेव हैं.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ उदीची दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताऽशनिरिषवः .
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो
दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/४
</span>
<span class="mantra_translation">
दिशि उत्तर के ईशानं अनुपम सोम देव हैं,
दुरितानि निवारक , शांति प्रदाता एकमेव हैं.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों द्वेष शेष हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता
वीरुध इषवः .
दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/५
</span>
<span class="mantra_translation">
दिशि ध्रुव के ईशानं अनुपम य़े विष्णु देव हैं,
दृढ़ता, स्थिरता के दाता, वे एकमेव हैं .
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता
वर्षमिषवः .
दध्मः.
अथर्ववेद ३ /२७/ ६
</span>
<span class="mantra_translation">
ऊर्ध्व दिशा के ईश बृहस्पति, परम देव हैं,
सात्विक, सुख अंतस के दाता, एकमेव हैं.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों.
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
उपस्थान मंत्र ______________________
ॐ उद्वयन्तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम् . देवं
देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् .
यजुर्वेद ३५/१४
</span>
<span class="mantra_translation">
अति परे प्रकृति से अन्धकार से दूर अति है,
जो बाद प्रलय के विद्यमान की अनुपम गति है.
है सूर्य शिरोमणि देवों क, वह तेरे कृति है,
तेरे प्रकाश की तेज महत, अति अनुपम गति है.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः . दृशे
विश्वाय सूर्यम्.
यजुर्वेद ३३/३१
</span>
<span class="mantra_translation">
इस विश्व में ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी, ज्ञान विवेक hai
उनका रचयिता, मूल कारण ब्रह्म केवल एक है.
गई है गरिमा ज्ञानियों ने , सत्य चित आनंद की,
सूर्य रचनाकार की, आनंदकंद निकंद की.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ चित्रं देवानामुद्गादनीकं चक्षुर्मित्रस्य
वरुणस्याग्नेः . आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष~म् सूर्य आत्मा
जगतस्तस्थुषश्च स्वाहा.
यजुर्वेद ७/४२
</span>
<span class="mantra_translation">
विश्वानि देवों में तू ही, अतिशय बली महिमा मयी.
मित्र, पावक, वरुण में तू एक ओजस्वीमयी.
"सूर्य" आत्मावत रमा, तू जगत हरदयाकाश में,
सर्व व्यापक अणु-अणु, द्यौ में धरनि आकाश में.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् . पश्येम
शरदः शतं जीवेम शरदः शत~म् शृणुयाम शरदः
भूयश्च शरदः शतात् .
यजुर्वेद ३६/१४
</span>
<span class="mantra_translation">
हे सर्व दृष्टा, सृष्टि के तू , आदि अंत व् मध्य में.
सौ वर्ष या उससे अधिक , रहूँ ब्रह्म के ही प्रबंध में.
बस ब्रह्म को देखें सुनें और ना कभी आधीन हों,
सौ वर्ष बोलें ब्रह्म की महिमा, कभी ना दीन हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
गायत्री मंत्र ________________________
ॐ भूर्भुवः स्वः . तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि . धियो यो नः प्रचोदयात् .
यजुर्वेद, ३६/३, ऋग्वेद, ३/६२/१०
</span>
<span class="mantra_translation">
हे सुख स्वरूपी, तुम जगत उत्पत्ति कर्ता हो महे!
प्राण स्वरूपी, सर्व रक्षक, कष्ट दुःख भंजक अहे!
वर करने योग्य तू, सदबुद्धि का दाता तू ही,
सत्मार्ग पर मम बुद्धियों को, ले चलो त्राता तू ही.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
समर्पण ________________________________
</span>
<span class="mantra_translation">
हे ईश्वर! दयानिधे सद्यः
सिद्धिर भवेनः.
मोक्ष काम व् अर्थ भी, धर्म भी प्राप्तव्य हैं,
आपकी आराधना से य़े सभी संभाव्य हैं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
नमस्कार मन्त्र
____________________________________
यजु.
यजुर्वेद १६/ ४१
</span>
<span class="mantra_translation">
सौख्य सिन्धु, दीनबंधु को हमारा नमन हो,
कल्याणकारी, विश्व त्राता को हमारा नमन हो.
शिव शांति के, प्रभु मूल उद्गम , को हमारा नमन हो.
मोक्ष सुख दाता, विधाता को हमारा नमन हो.
</span><span class="upnishad_mantra">
अथ ईश्वर स्तुति प्रार्थनोपासना मंत्रः.
अथ देव यज्ञ प्रार्थना-मंत्र.
तन्न आ सुव.
यजुर्वेद ३०/३
</span>
<span class="mantra_translation">
जगत के उत्पत्ति कर्ता, तुम नियंता नित्य हो.
प्राणियों के प्राण ईश्वर, जग अनृत तुम सत्य हो.
दुर्व्यसन, दुःख, रोग, दुर्गुण, दीनता सब शेष हो,
स्वस्तिमय शुभ मंगलम, तेरे कृपा सविशेष हो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः
पतिरेक आसीत् . स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै
देवाय हविषा विधेम.
यजुर्वेद १३/४
</span>
<span class="mantra_translation">
सृष्टि े भी पूर्व सृष्टा, तेज पुंज विराट है,
सूर्य, शशि, भू-लोक द्यु, रच धारता एक राट है.
उस प्रजापति देव से, हम सत्य अनुरक्ति करें,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की, अति प्रेम से भक्ति करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं
यस्य देवाः . यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय
हविषा विधेम.
यजुर्वेद २५/१३
</span>
<span class="mantra_translation">
प्राण, बल, जीवन प्रदाता, जिसका शासन श्रेय है,
जिसकी छाया अमिय रूपी, मोक्ष दाता प्रेय है.
उस प्रजापति देव से हम सत्य अनुरक्ति करें,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ य प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो
बभूव . य ईशे द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय
हविषा विधेम.
</span>
<span class="mantra_translation">
यजुर्वेद ३३/३
जगत जड़-जंगम रचयिता, सकल प्राणी वर्ग का,
उस प्रजापति देव से हम सत्य अनुरक्ति करें,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृ"धा येन स्वः
स्तभितं येन नाकः . यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय
हविषा विधेम.
यजुर्वेद ३२/६
</span>
<span class="mantra_translation">
भूलोक, द्यु, रवि, चन्द्र, ध्रुव, और अन्तरिक्ष बनाए हैं.
जो मुक्ति, सुख दाता, विधाता, रूप बहु बन छाये हैं.
उस प्रजापति देव से हम सत्य अनुरक्ति करें,
सत सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता
बभूव . यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो
रयीणाम् .
</span>
<span class="mantra_translation">
ऋग्वेद /१०/१२१/१०
आप ही स्वामी प्रजाके, दूसरा नहीं अन्य है,
जो हमारी कामनाएं, सिद्ध सब प्रभुवर करें,
अतुल धन ऐश्वर्य का, स्वामी हमें ईश्वर करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद
भुवनानि विश्वा . यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये
धामन्नध्यैरयन्त .
यजुर्वेद ३२/१०
</span>
<span class="mantra_translation">
तू हमारा जन्म दाता, मातु- पितु बन्धु सभी.
मोक्ष दायक पूर्ण प्रभु का, साथ न छूटे कभी.
वह हमारे नाम जन्मों, धाम को है जानता.
व्याप्त है ब्रह्माण्ड अखिलं, ब्रह्म की ही महानता.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि
विद्वान् . युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमौक्तिं
विधेम .
यजुर्वेद ४०/१६
</span>
<span class="mantra_translation">
त्म-भू, ज्योति स्वरूपी, सुपथ पर ले जाइए,
द्वेष, कटुता, कुटिलता से नाथ हमको बचाइये.
संपदा, ऐश्वर्य, श्री, सत धर्म पथ से पा सकें,
प्रेम भक्ति मय 'नमन' गुण गान तेरा गा सकें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
अथ स्वस्तिवाचनम.
ॐ अग्नि मीडे पुरोहितं ---------------------------------------रत्नधातमम.
ऋग्वेद १/१/१
</span>
<span class="mantra_translation">
ज्ञानस्वरूपी आदि धारक, सृष्टि का सृष्टा महे,
इच्छित मनोहर द्रव्य दाता, सृष्टि में एकमेव हे!
रत्नों के धारक, हे प्रकाशक! यज्ञादि के तुम हो प्रभो,
हम वंदना करते उसी की, विश्व का जो है विभो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स नः पितेव ---------------------------------------------नः स्वस्तये.
ऋग्वेद १/१/९
</span>
<span class="mantra_translation">
जैसे पिता, हित हेतु सुत के, हर निमिष तत्पर रहे,
वैसे कृपा प्रभु आपकी, हर पल निमिष हम पर रहे.
ज्ञानस्वरूपी हे परम! यही आपसे है प्रार्थना,
कल्यानमय शुभ दृष्टि की, हम कर रहे अभ्यर्थना.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स्वस्ति नो मिमीताम ---------------------------------पृथ्वी सुचेतुना.
ऋग्वेद ५/ ५१/११
</span>
<span class="mantra_translation">
उपदेश कर्ता और अध्यापक, सभी मंगलमयी,
यह दिव्य पृथ्वी, अचल पर्वत, द्यु सभी हों सुख मयी.
जीवन प्रदाता मेघ वर्षा, हों सभी स्वस्तिमयी.
सब स्वस्तिमय यदि आपकी शुभ दृष्टि हो करुणामयी.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
स्वस्तये वायुमुप ---------------------------------------------भवन्तु नः.
ऋग्वेद ५/५१/११
</span>
<span class="mantra_translation">
वेद ज्ञाताओं से प्रभुवर ही सदा सानिध्य हो,
वायु, विद्या, प्रवण जन मम, स्वस्ति में संनिद्ध हों.
चन्द्र से औषधि, रसों और सूर्य से ले ऊर्जा.
स्वस्तिमय औषधि रचें, स्वस्तिमय होवे प्रजा.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ विश्वे देवा ---------------------------------------------रु्रा पात्वंहसः.
ऋग्वेद ५/५१/१३
</span>
<span class="mantra_translation">
ज्ञानी सभी कल्याणकारी और सुख दाता रहें
हमको बचाएं शत्रुओं से, और दुःख त्राता रहें.
परमात्मा सर्वज्ञ हितकारी हमें समृद्धि दे,
दुष्ट संहारक तू ही, हमको सदा सदबुद्धि दे.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स्वस्ति मित्र वरुणा -----------------------------------नो अदिते कृधि.
ऋग्वेद ५/५१/१४
</span>
<span class="mantra_translation">
यह प्राण और उदान वायु, हों हमें स्वस्तिमयी ,
वायु व् विद्युत् भी हमें पथ ले चलें उन्नतिमयी.
सर्वज्ञ परमेश्वर! हमें शुभ शक्ति समृद्धि मयी,
ही मार्ग पर तुम ले चलो, सब भांति जो स्वस्तिमयी.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स्वस्ति पन्था मनुचरेम---------------------------------संगमेमही .
ऋग्वेद ५/५१/१५
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! ईश हम रवि, चन्द्रमा का अनुसरण करते हुए,
कल्याण पथ पर ही चलें , तेरा ध्यान हिय धरते हुए.
परदुख द्रवित दानी व् ज्ञानी का हमें सत्संग दो..,
शुभ सात्विक वृतियों से पूरित, याज्ञिकों का संग दो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ य़े देवानां ---------------------------------------------स्वस्तिभिः सदा नः.
ऋग्वेद ७/३५/१५
</span>
<span class="mantra_translation">
जो सत्य ज्ञानी अमर यशमय, यज्ञ अधिकारी महे.
वे सब हमें कल्याण भाव से, कीर्ति मय विद्या कहें.
सकल द्रव्यों से हमारा, शुभ करें हर काल में,
सुख शांति से रहना सिखा दें, इस जगत जंजाल में.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ येभ्यो माता ------------------------------------------अनुमदा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/३
</span>
<span class="mantra_translation">
यह मातु पृथ्वी मधुर पय को, दे रही जिनके लिए.
अविछिन्न घन से व्याप्त द्यु , देता है जल जिनके लिए.
जो याज्ञिक शुभ कर्मों से , वृ्टि का आवाहन करें.
वे साथ हम सब के रहें और ज्ञान संवर्धन करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ नृचक्षसो -----------------------------------------------वसते स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/४
</span>
<span class="mantra_translation">
अनिमेष शुभ चिन्तक सभी का, पूज्य ज्ञानी अति महे.
अमरता को प्राप्त मन, तथापि तन जग में रहे.
निष्पाप जीवन मुक्त ऐसे, ब्रह्मचारी का हमें.
सानिध्य करवा दो प्रभो, हम नमन करतें हैं तुम्हें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ सम्राजो य़े
---------------------------------------------------अदिति स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/ ६३/५
</span>
<span class="mantra_translation">
विद्वान् उन्नतिशील ज्ञानी, कर्म कर्ता श्रेष्ठ हों,
आदित्य सम ज्ञानी महत, सम्मान उनका यथेष्ठ हो.
हे मानवों! सम्मान उनका , हृदय से करना सदा.
कल्याण हित हेतु तुम्हें दें, ज्ञान की वे संपदा.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ओम को वः स्तोम
---------------------------------------------पर्षदात्यान्हः स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/ ६३/ ६
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! ज्ञानियों तुम सबही, किसकी करते हो अभ्यर्थना,
कब कौन सुनता, पूर्ण करता है, तुम्हारी प्रार्थना.
बहु जन्मों के शुभ कर्म फल, कौन देता है तुम्हें.
एकमेव प्रभु, अघ से बचा , निष्पाप कर देता हमें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ येभ्यो होत्रम ---------------------------------------------सुपथा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/६
</span>
<span class="mantra_translation">
ज्ञानी मनस्वी यज्ञ करते, श्रद्धा से जिनके लिए,
एकाग्र मन और चित्त श्रद्धा , है बसी जिनके हिये.
वे सब अभय ज्ञानी सुखी हों, हे प्रभु वरदान दे,
हम भी सत-पथ के पथिक हों, प्रेरणा और ज्ञान दो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ य ईशिरे -------------------------------------------------पिपृता स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/ ६३/ ८
</span>
<span class="mantra_translation">
जड़-चेतना, सृष्टि जगत का, एक स्वामी ब्रह्म है,
उस ब्रह्म तत्त्व से विज्ञ ज्ञानी, अग्रगामी प्रणम्य है.
कृत-अकृत पापों से बचाकर, सुपथ दे और त्राण दें ,
उनके सभी शुभ भाव मंगल मय, हमें कल्याण दें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ भरेषविन्द्रम --------------------------------------------मरुतः स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/९
</span>
<span class="mantra_translation">
हे ! ईश हम श्री विजय के हित , जगत के संघर्ष में,
इह पारलौकिक जगत जीवन, दुःख में और हर्ष में.
जल, अग्नि, वायु, ज्ञान के, वैज्ञानिकों और ज्ञानियों,
का हृदय से आदर करें, कल्याण के हित प्राणियों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ सुत्रामाणं ---------------------------------------------रुहेमा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१०
</span>
<span class="mantra_translation">
जगरूप भव सागर को हम सब ज्ञान रूपी नाव से,
ही पार कर सकतें हैं केवल, दिव्य शक्ति भाव से,
यह दिव्य नौका दोष हीन, अखण्ड हो रूचि पूर्ण हो.
इस दिव्य सात्विकता से जीवन, पूर्ण हो सम्पूर्ण हो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ विश्वे यजत्रा ---------------------------------------देवा अवसे स्वस्तये .
ऋग्वेद १०/६३/११
</span>
<span class="mantra_translation">
मम रक्षा हेतु प्रणम्य ज्ञानी, आप ही उपदेश दें,
रक्षित हों कैसे शत्रुओं से, ज्ञान इसका विशेष दें.
दुःख दायी, दुर्गति से हमारी आप ही रक्षा करें.
स्वस्ति रिद्धि को बुलाते, आप ही दीक्षा करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ अपामीवामय ---------------------------------------यच्छता स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१२
</span>
<span class="mantra_translation">
रोगादि, नास्तिक बुद्धि सबकी, दूर ज्ञानी जन करो,
कुटिल पापी दुष्ट को , सतभाव से सत जन करो.
मन द्वेष मय , जिने विकारी, दूर वे हमसे रहें,
हम लोभ पाप विहीन हों, और शांति व् सुख से रहें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ अरिष्टः ----------------------------------------------दुरिता स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१३
</span>
<span class="mantra_translation">
पाप के पथ से बचातीं नीतियां नीतज्ञ की,
विज्ञ सत पथ से करातीं, विधि सकल वेदज्ञ की.
सकल पापों का निवारण, वे सहज ही कर सकें,
पूर्वजों की कीर्ति वृद्धि, अथ स्वयं ही कर सकें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ देवासो अवथ ----------------------------------------रुहेमा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१४
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! यज्ञ कर्ता ज्ञानियों, ऐश्वर्य , धन, संतान को,
आप करते प्रार्थना , प्रातः नमन भगवान् को.
हम उसी ऐश्वर्य दाता और दयालु ईश की,
वन्दना स्तुति करें, व्यापक परम जगदीश की.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स्वस्ति नः पथ्यासु --------------------------------मरतो दधातन.
ऋग्वेद १०/६३/१५
</span>
<span class="mantra_translation">
मरू भूमि, भू पथ, व्योम, जल पथ, लोक द्यु आदि सभी,
कल्यानमय मम हेतु हों, इनसे न हो व्याधि कभी.
बहु शस्त्र युक्त हमारी सेनाएं, हमें कल्याण दें,
बहु विधि करें कल्याण और सब विधि हमें परित्राण दें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स्वस्ति रिद्धि ------------------------------------भवतु देव गोपा.
</span>
<span class="mantra_translation">
ऋग्वेद १०/६२/१६
हे! ईश सुन्दर मार्ग और धन अन्न से जो पूर्ण हो,
रक्षित हों जो बहु ज्ञानियों से, वास हित हमको प्रभो,
सुलभ हो पृथ्वी तेरे, आशीष से हमको विभो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ इषे त्वो-------------------------------------------पशून पाहि.
प्रभु अ्न और बल के लिए आश्रय तुम्हारा मांगते,
शुभ कर्मों हित प्रेरित करो, व्यापक जनक हे सत्पते!
हों स्वस्थ और निरोग गोधन, बछड़ो के संग पयवती,
आधीन न हों दुर्जनों के, याज्ञिक हों शुभ श्री धनपती.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ आनो भद्रा------------------------------- रक्षितारो दिवे-दिवे.
यजुर्वेद २५/१४
</span>
<span class="mantra_translation">
शुभ स्वस्तिमय संकल्प प्रभुवर , आप हमको दीजिये.
सर्वोच्च दुःख नाशक विचारक, प्राप्य हमको कीजिये.
अप्रमादी हो विचारक , सोचें नहीं कुछ अन्यथा,
नित्य उनके ज्ञान से ही , सबकी वृद्धि हो यथा.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ देवानां भद्रा
-----------------------------------------------प्रतिरन्तु जीवसे.
यजुर्वेद २५/१५
</span>
<span class="mantra_translation">
ज्ञानियों व् दानयों की स्वस्तिमय जो भावना,
भाव वैसे ही हमें, देना प्रभुवर कामना.
श्रेय व् ज्ञानी जनों से मित्रता, सानिध्य हो,
जन दिव्य वे मम दीर्घ आयु, हेतु भी सम्बद्ध्य हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ तमीशानं ----------------------------------------पायुर दब्धः स्वस्तये.
यजुर्वेद २५/११
</span>
<span class="mantra_translation">
जग चराचर का नियामक और विधाता ईश तू,
एक तू ही सदबुद्धि दाता , आत्म भू जगदीश तू.
हम बुलाते हैं तुझे, धन पुष्टि दाता एक तू .
कल्याण हम सबका करो, सृष्टि विधाता एक तू.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो -------------------------------------नो बृहस्पतिर दधातु.
यजुर्वेद २५/१९
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! ईश मम कल्याण को , कल्याण का पोषण करें,
हे विश्व वेदः पूषा, श्री मय ज्ञान संवर्धन करें.
हे बृहस्पति! अरिष्ट नेमिः , स्वस्ति कारक आप हैं,
त्रिविध ताप हों शांत जग के, देते जो संताप हैं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ भद्रं कर्णेभिः -------------------------------------------देवहितं यदायुह.
यजुर्वेद २५/२१
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! देवगण कल्याणमय, हम वचन कानों से सुनें,
कल्याण ही नेत्रों से देखें, सुदृढ़ अंग बली बनें .
आराधना स्तुति प्रभो की, हम सदा करते रहें,
मम आयु देवों के काम आये हम नमन करते रहें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ अग्न आयाहि ------------------------------------------सत्सि वहिर्षी.
ॐ सामवेद ॐ १/१
</span>
<span class="mantra_translation">
हे ईश ! सुख दाता तू ही, ब्रह्माण्ड विश्व में व्याप्त है,
ऐश्वर्य शांति ज्ञान दाता , की कृपा पर्याप्त है.
यज्ञादि शुभ कार्यों में, प्रभुवर आप ह स्तुत्य हैं,
वास हृदयों में करो, प्रभु आप ही तो नित्य हैं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ त्वमग्ने--------------------------------------देवेभिर्मानुशेजनो.
सामवेद १/२
</span>
<span class="mantra_translation">
प्रभु श्रेय कर्मों के प्रणेता और प्रेरक आप हैं,
सबके हित साधक, हरो दुःख आदि जो संताप हैं.
हे! ज्योति व् ज्ञान स्वरूपी, ज्ञानियों के ज्ञान में,
दिव्य गुण बन आ बसो, उनके हृदय स्थान में.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ य़े त्रिशप्ता--------------------------------------अघ दधातु मे.
अथर्ववेद १/१/१
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! वेद उपदेष्टा, प्रभु परब्रह्म हे परमात्मा!
बल तुम्हीं तन मन में देना, शक्तिमय हों आतमा.
यह जग चराचर तुमसे पोषित, और परिवर्तित हुए,
सत, रज, तमो गुण, तत्व इन्द्रिय, प्राण आवर्तित हुए.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
अथ शांति प्रकरणं
ॐ शनं इन्द्राग्नी -------------------------------------------वाजसातौ.
</span>
<span class="mantra_translation">
ऋग्वेद ७ /३५/१
प्रभु ! मेघ, विद्युत्, जल, सभी, मम हेतु हितकारी बनें,
इह दृष्टि से भी वायु विद्युत् , सर्व कल्याणक सदा,
तेरी कृपा से तत्व सब, श्री, शांति की दें सम्पदा.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो भघः-----------------------------------------------पुरुजातो अस्तु.
ऋग्वेद ७ /३५ /२
</span>
<span class="mantra_translation">
ऐश्वर्य, श्री, एवं प्रसंशा, आपसे जो प्रदत्त हैं.
सुख, शांति, धन दायक बनें, हम आपके प्रभु भक्त हैं.
सब लाभकारी हों नियम, हित ेतु न्यायाधीश हों,
अणु-कण जगत का शुभ्र हो, यदि आपके आशीष हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो धाता ----------------------------------------------सुखानि सन्तु.
ऋग्वेद ७/३५/३/
</span>
<span class="mantra_translation">
धारक व् पोषक ब्रह्म है, वह शांति कारक हो हमें,
अन्नादिमय भू, ज्योतिमय द्यु, शांति कारक हों हमें.
महती धरा और मेघ वर्षा, शांति कारक हों हमें.
शुभ्र स्तुति ज्ञानियों की, शांति कारक हो हमें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो अग्निर्ज्योतिर्नीको -----------------------------------अभिवातु वातः.
ऋग्वेद ७/३५/४
</span>
<span class="mantra_translation">
ज्योतिर्स्वरूपी ब्रह्म दिव्य का, तेज अति सुख पूर्ण हो,
शुभ आचरण धर्मात्माओं के, हमें सुख पूर्ण हों.
उपदेश कर्ता और अध्यापक, ज्ञान हित अभ्यर्थना,
प्राण और अपान व् गमन शीला, वायु सुख दें, प्रार्थना.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो द्यावा पृथ्वी -------------------------------------------------जिष्णुः
ऋग्वेद ७/३५/५
</span>
<span class="mantra_translation">
मम पूर्वजों के कर्म उत्तम, भूमि विद्युत् आदि भी.
वृक्ष औषधियां, वनस्पति, प्राकृतिक तत्त्व आदि भी.
अन्तरिक्षम लोक हमको, लाभ दें सुख शांति दें.
भावना और स्नेह स्वामी, हार्दिक सुख शांति दें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शंनम इन्द्रो ---------------------------------------------------श्रुनोतु.
ऋग्वेद ७/३५/६
</span>
<span class="mantra_translation">
यह दिव्य गुणमय सूर्य भी, मम हेतु धन, सुख, स्रोत हों.
रवि, रश्मि, आवृत लाभकारी, ही सभी जल स्रोत हों.
दुष्ट दंडक , शांत रूपी, ब्रह्म सुख का रूप हो.
शुभ वाणी से हमको विवेचक ज्ञान दें, जो अनूप हो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शं न सोमो ----------------------------------------------------शम्वस्ु वेदिः
ऋग्वेद
७/३५/७/, यजुर्वेद १५/१२
</span>
<span class="mantra_translation">
मम हेतु प्रभु अन्नादि तत्त्व भी , शांति दायक हों सभी,
सब वनस्पतियाँ , औषधी भी, स्वास्थ्य दायक हों सभी.
यज्ञ वेदी, कुंडादिक् भी शांति दायक हों सभी.
शुभ कार्य, साधन भूत जड़, वस्तु सहायक हों सभी.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शं न सूर्य उरु
ऋग्वेद ७/३५/८
</span>
<span class="mantra_translation">
नदियाँ, जलद, सारी दिशाएं , हे! प्रभो, सुख रूप हों,
दृढ़ गगन चुम्बी, अचल गिरि भी, लाभकारी अनूप हों.
यह उदित व् दैदीप्य रवि, सागर महासागर सभी.
सुख शांति व् समृद्धि के हों, सिद्ध य़े आकर सभी.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो अदितिर भवतु
---------------------------------------------शम्वस्तु वायुः.
ऋग्वेद ७/३५/९
</span>
<span class="mantra_translation">
यह अन्न उपजाती धरा, उसमें सहायक वायु भी,
पुष्टि कर्ता सूर्य देता, ऊर्जा और आयु भी.
विदुषी माताएं प्रभो! मम हेतु सुख की स्त्रोत हों.
'मृदुल' भाषी, शान्तिप्रद, और ज्ञान की शुभ ज्योति हों.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो देवः ------------------------------------------------------पतिरस्तु
शम्भु.
ऋग्वेद ७/३५/१०
</span>
<span class="mantra_translation">
हे ईश! ज्योतिर्मय रवि, रक्षक हमारा हो सदा,
दीप्ति मय ऊषाएं उज्जवल , शांतिमय हों सर्वदा.
यह मेघ भी कल्याण कारी , हो सकल जग के लिए.
जगत स्वामी ब्रह्म हो, सुख लाभ प्रद सबके लिए.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो देवा ------------------------------------------------------विश्व
देवा शंयो अप्याः.
ऋग्वेद ७/३५/११
</span>
<span class="mantra_translation">
आत्मदर्शी, तत्त्व ज्ञानी, ज्ञानमय उनकी गिरा.
धन व् विद्या दान कर्ता, लोक सुख एवं धरा.
यह सृष्टि होवे स्वस्तिमय, और शांति सुख कारक बने.
यदि आपकी प्रभु हो कृपा, और आप मम धारक बनें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो अज-----------------------------------------------------------------
देव गोपा.
ऋग्वेद ७/३५/१३
</span>
<span class="mantra_translation">
रक्षक, अजन्मा, ब्रह्म सुख दाता , सदा त्वमेव है,
तू एक रस, सुख शांति दाता, विरल तू एकमेव है.
अन्तरिक्ष स्थित मेघ, सागर , सब हमें सुख दे सकें.
नौका जलों की पार कर दें और कहीं हम ना रुकें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ इन्द्रो विश्वस्य
---------------------------------------------------------चतुष्पदे.
यजुर्वेद ३६/८
</span>
<span class="mantra_translation">
विश्वानि जग कर्ता प्रकाशित, ब्रह्म ही एकमेव है.
द्विपद , चतुष्पद , प्राणियों का , शांति दाता देव है.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो वातः ----------------------------------------------------------अभिवर्षतु
यजुर्वेद ३६/१०
</span>
<span class="mantra_translation">
यह तप्त रवि, बहता पवन, घन, नाद, जल वर्षित करें.
प्रभु आपकी यदि हो कृपा तो , यह सभी हर्षित करें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ अहानि शं भवतु
-------------------------------------------------सुविताय शंयोः.
यजुर्वेद ३६/११
</span>
<span class="mantra_translation">
जल, अग्नि, वायु,, मेघ, विद्युत् , चन्द्र, रवि, सारी धरा.
दिन रात सब अपनी कृपा से, हे प्रभो सुखमय करा.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो देवी --------------------------------------------------------------वन्तु
नः.
यजुर्वेद ३६/१२
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! सर्व व्यापक, दिव्य रूपी, दिव्य दृष्टि कीजिये.
इष्ट सुख की पूर्ण तृप्ति, दया वृष्टि कीजिये.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ द्यौ शांति -----------------------------------------------------------शांति
रेधि.
यजुर्वेद २६/१७
</span>
<span class="mantra_translation">
रवि, जल, धरा, द्यु लोक, औषधि , वनस्पतियाँ शांति दें.
ज्ञानी, मनस्वी, ज्ञान उनका, चित्त को सत शांति दे.
सर्वत्र ही हो शांति-शांति, शांति शुभ अविभाज्य हो.
शुचि शांतिमय परिवेश हों, शांति का साम्राज्य हो.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ तच्च्क्षुरदेवहितं
---------------------------------------------------शरदः शतात.
यजुर्वेद ३६/२४
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! सर्व दृष्टा , सर्व हितकारी अनादि काल से,
सत्ता यथावत देखते हो, सबको तीनों काल से.
न दीन हों हम हे प्रभो! देखें सुनें मुखरित रहें.
सौ वर्ष या इससे अधिक हे नाथ ! हम जीवित रहें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ यज्जाग्रतौ -------------------------------------------------------शिव
संकल्प मस्तु.
यजुर्वेद ३४/१
</span>
<span class="mantra_translation">
जागते , सोते, सुषुप्ति काल में, मन दूर से भी दूर जाता है कहीं,
मन की गति की साम्यता, कहीं कोई कर सकता नहीं.
मन इन्द्रियों का है प्रकाशक, ना कभी विचलित रहे.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ येन कर्मान्यपसों
-----------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
यजुर्वेद ३४/२
</span>
<span class="mantra_translation">
जिस मन के द्वारा दृष्ट कर्मों को मनस्वी कर रहे,
सत कर्म रत सबकी प्रगति, वे सब तपस्वी कर रहे.
वह मन हमारा, प्राणियों के हित में रत नियमित रहे.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ यतप्रज्ञानमुत
------------------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते!, शिव सत्य संकल्पित रहे.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ येनेदं भूतं
---------------------------------------------------------शिव
वह मन हमारा सत्पते, शिव सत्य संकल्पित रहे.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ यस्मिन्न -----------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ सुषारथिर ----------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ स नः पवस्व ------------------------------------------------राजन्नोषधीभ्या.
सुख शांति ही सर्वत्र कर दो. दिव्य शांतिमय प्रभो.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ अभयं नः ---------------------------------------------------नो अस्तु.
दो शक्ति कि सर्वत्र ही, हम सब अभय हों प्रवीण हों.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ अभयं मित्रा दभयम--------------------------------------------मम
मित्रं भवन्तु.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
यज्ञ प्रकरणं
_______________________-
अंग स्पर्श
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ वाङ् म आस्येऽस्तु . ॐ नसोर्मे प्रणोऽस्तु . ॐ अक्ष्णोर्मे
चक्षुरस्तु . ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु . ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु . ॐ
सब अंग रोग विहीन प्रभु, जीवन को सात्विक अर्थ दो.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ भूर्भुवः स्वः .-------------------------------------
गोमिल
दुःख विनाशक , सृष्टि धारक , ॐ ही परब्रह्म है.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
अग्न्याधानाम
ॐ भूर्भुवः स्वः -------------------------------------द्यायादधे.
द्युलोक सा विस्तृत हृदय, और भूमि सा मन बन सकूं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
अग्नि प्रदीपन
ॐ उद्बुद्ध्य ------------------------------------------सीदत.
आओ बैठो याज्ञिकों, दुःख यज्ञ से हटते यहॉं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
समिधाधान मन्त्र
ॐ अयंत इध्म आत्मा-------------------------------इदं न मम .
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ समिधाग्निम -----------------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद ३/१
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ सुसमिद्धाय-------------------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद ३/२
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ तंत्वा समिदिभर ---------------------------गिरसे इदं न मम.
यजुर्वेद ३/३
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
घृताहुति मंत्रः
ॐ अयंत इध्म आत्मा -----------------------------इदं न मम.
इसका अर्थ पूर्व में दिया जा चुका है.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
जल प्रसेचन मन्त्र ( जल प्रोक्षणं )
ॐ अदिते -----------------पूर्व दिशा में जल का सिंचन.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
आघारावाज्यभागाहुती
ॐ अग्नये स्वाहा. इदं अग्नय इदं न मम.
अर्पित है आहुति ब्रह्म को, इसमें मेरा किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
आज्यभागाहुति
ॐ प्रजापते स्वाहा. इदं प्रजापतये इदं न मम.
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित , मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
प्रातः काल की आहुतियाँ
ॐ सूर्यो ज्योति ज्योतिर सूर्याः स्वाहा.
त्यों दीजिये तेजस्व प्रभुवर! आप ही तो नित्य हैं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
सायंकाल आहुति के मन्त्र
ॐ अग्नि ज्योतिर ज्योतिराग्निः स्वाहा .१
रवि कान्ति से ऊषा सुशोभित, जगत को शोभित करे.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ सजूर्देवेन सवित्रा ------------------------------------अग्निर्वेतु स्वाहा
यज्ञाग्नि के संयोग से, सर्वत्र इनका प्रसार हो.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
प्रातः और सायः दोनों काल के मन्त्र.
ॐ भूरग्नये -------------------------------------नेभ्यः इदं न मम.
यह आहुति उस पूर्ण प्रभु को मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ आपो ज्योति --------------------------------स्वरो स्वाहा
तैत्तरीय आरण्यक १०/१५
सर्व रक्षक सुख प्रदाता , अति महिम सर्वेश हे!.
अमर शुचि आनंद दाता, परम प्रभु परमेश हे!
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ यां मेधा -------------------------------------कुरु स्वाहा.
यजुर्वेद ३२/१४.
आत्मदर्शी और विवेकी बुद्धि का, ज्ञानरूपी हे प्रभु! वरदान दे.
बुद्धि मेधावी की करता प्रार्थना, सत बुद्धि मेधा का हमें भी दान दे.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ विश्वानि देव -------------------------------------तन्नासुव.
अनुवाद पीछे है.poo
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ अग्ने नय सुपथा ------------------------------उक्तिम विधेम.
अनुवाद पीछे है.
शुभ स्वस्ति मंगल मोक्ष दाता को, पुनि-पुनि नमन हो.
यजुर्वेद १६/४
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ सर्व वै पूर्ण स्वाहा.------------------पूर्णाहुति.
तुलना शत पथ ५/२/२/१
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
सामान्य प्रकरणं
व्यह्रुत्याहुतिः
गोपथ १/८/४
प्रातः और सायं के मन्त्रों में पीछे देखें.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
स्वष्टिकृदाहुति मंत्रः
ॐ यदस्य कर्मणो
हो आहुति प्रभु काम सिद्धक, मेरा कुछ किंचित नहीं.
शतपथ का.१४/९/४/२४.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
प्राजापत्यहुति मंत्रः
इससे मौन होकर एक आहुति दें.
आज्याहुति मंत्रः
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ भूर्भुवः स्वः.-------------------------------------------इदं न मम.
दुर्भाग्य, दुःख, आपत्तियों से हो सदा वंचित मही,
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता को , मेरी किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ भूर्भुवः स्वः. अग्निर्रिशी ----------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद २९/९
प्रार्थना सत ऋत ह्रदय की, याचना इच्छित यही.
यह आहुति उस सर्व दृष्टा को, मेरी किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ भूर्भुवः स्वः. अग्ने पवस्व स्वपा --------------------------पवमानाय इदं न मम.
पुष्टि, पराक्रम, संपदा, दे दो हमें इच्छित यही.
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता, को मेरी किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ भूर्भुवः स्वः. प्रजापते
------------------------------------प्रजापतये इदं न मम.
यह आहुति है, प्रजापति हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
अष्टाज्याहुती
ॐ त्वम् नो अग्ने
हमें श्रेष्ठतम बल तेज दो,मम कामना समुचित यही
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरा कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ स त्वं नो अग्ने
अवसो------------------------------------------------इदं न मम.
हमको सुगमता से मिलें , प्रभु आप है, इच्छित यही.
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरी कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ इमं मे वरुण---------------------------------------------------इदं
वरुणाय इदं न मम.
शुचि भाव पूरित याचना है, बस प्रभु अर्पित यही.
यह आहुति अति श्रेष्ठ प्रभु को , मेरी कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ तत्वा यामी ब्रह्मणा--------------------------------------------इदं न मम.
सुन प्रार्थना तत्काल, आयु दीर्घ हो इच्छित यही.
यह आहुति सर्वोच्च प्रभु हित , मेरी कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ य़े ते शतं ------------------------------------------------स्वर्केभ्यः
इदं न मम.
यज्ञ की बाधाएं ज्ञानी हर सकें , इच्छित यही.
यह आहुति प्रभु, रित्त्विजों हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ अयाश्चागने ----------------------------------------------इदमग्नये
अयसे इदं न मम.
दुःख, रोग, पाप निःशेष हों, कर दो कृपा सिंचित मही.
यह आहुति परब्रह्म प्रभु हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ उदुत्तम वरुण ----------------------------------------च इदं न मम.
बंधन, विकार विहीन मन हो, कर्म न सिंचित कहीं.
यह आहुति हित मोक्ष दाता, मेरी कुछ किंचित नहीं.
<span class="upnishad_mantra">
</span>
<span class="mantra_translation">
</span>
ॐ भवतन्तः समनसौ-------------------------------इदं जात वेदोभ्याम इदं न मम.