भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन,<br>
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ<br><br>
बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया,<br>
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया,<br>
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा,<br>
कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया<br><br>