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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
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बज़्म से उठ कर जाना क्या
ऐसा भी इतराना क्या

दर्द इनायत मालिक की
दर्द का रोना गाना क्या

मन के भीतर के मन को
छूना क्या सहलाना क्या

अपनी मर्जी आये कब
अपनी मर्जी जाना क्या
</poem>