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[[Category:ग़ज़ल]]<poem>
हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरहआँचल में सजा लेना कलियाँ जुल्फों में सितारे भर लेना उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरहऐसे भी कभी जब शाम ढले तब याद हमें भी कर लेना
इस कू-ए-तिश्नगी में बहुत है के एक जामआया था यहाँ बेगाना सा कहल दूंगा कहीं दीवाना सा हाथ आ गया है दौलत-ए-बेदार की तरहदीवाने के खातिर तुम कोई इलज़ाम न अपने सर लेना
वो तो हैं कहीं और मगर दिल के आस पासफिरती है रास्ता जो मिले अनजान कोई आ जाए अगर तूफान कोई शय निगाह-ए-यार की तरह सीधी है राह-ए-शौक़ प यूँ ही कभी कभीख़म हो गैइ है गेसू-ए-दिलदार की तरह अब जा अपने को अकेला जान के कुच खुला हुनर-ए-नाखून-ए-जुनूनज़ख़्म-ए-जिगर हुए लब-ओ-रुख़्सार की तरह 'मजरूह' लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नामहम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरहतुम आँखों मे न आंसूं भर लेना
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