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वैदिक संध्या / मृदुल कीर्ति

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'''ॐ'''
'''निर्वाण षडकम''''''श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित'''
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ओ३म्‌ शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये।
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अथ स्वस्तिवाचनम.
अग्नि मीडे अग्निमीळे पुरोहितं ---------------------------------------रत्नधातमम.यज्ञस्य देवं ऋत्वीजम् ।होतारं रत्नधातमम् ॥
ऋग्वेद १/१/१
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ॐ स नः पितेव ---------------------------------------------सूनवेऽग्ने सूपायनो भव ।सचस्वा नः स्वस्तये.
ऋग्वेद १/१/९
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स्वस्ति नो मिमीताम ---------------------------------पृथ्वी मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति देव्यदितिरनर्वणः ।स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नः स्वस्ति द्यावापृथिवी सुचेतुना.
ऋग्वेद ५/ ५१/११
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स्वस्तये वायुमुप ---------------------------------------------ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः ।बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः.
ऋग्वेद ५/५१/११
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ॐ विश्वे देवा ---------------------------------------------रु्रा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये ।देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः.
ऋग्वेद ५/५१/१३
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ॐ स्वस्ति मित्र वरुणा -----------------------------------मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति ।स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि.
ऋग्वेद ५/५१/१४
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ॐ स्वस्ति पन्था मनुचरेम---------------------------------संगमेमही .पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव ।पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि ॥
ऋग्वेद ५/५१/१५
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ॐ येभ्यो माता ------------------------------------------मधुमत्पिन्वते पयः पीयूषं द्यौरदितिरद्रिबर्हाः ॥उक्थशुष्मान्वृषभरान्त्स्वप्रसस्ताँ आदित्यां अनुमदा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/३
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ॐ नृचक्षसो -----------------------------------------------अनिमिषन्तो अर्हणा बृहद्देवासो अमृतत्वमानशुः।ज्योतीरथा अहिमाया अनागसो दिवो वर्ष्माणं वसते स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/४
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ॐ सम्राजो य़ेये सुवृधो यज्ञमाययुरपरिह्वृता दधिरे दिवि क्षयम्।---------------------------------------------------अदिति स्वस्तये.ताँ आ विवास नमसा सुवृक्तिभिर्महो आदित्याँ अदितिं स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/ ६३/५
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ओम को वः स्तोमव स्तोमं राधति यं जुजोषथ विश्वे देवासो मनुषो यति ष्ठन।---------------------------------------------पर्षदात्यान्हः स्वस्तये.को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो नः पर्षदत्यंहः स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/ ६३/ ६
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ॐ येभ्यो होत्रम ---------------------------------------------होत्रां प्रथमामायेजे मनुः समिद्धाग्निर्मनसा सप्त होतृभिः।त आदित्या अभयं शर्म यच्छत सुगा नः कर्त सुपथा स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/६
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ॐ य ईशिरे -------------------------------------------------भुवनस्य प्रचेतसो विश्वस्य स्थातुर्जगतश्च मन्तवः।ते नः कृतादकृतादेनसस्पर्यद्या देवासः पिपृता स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/ ६३/ ८
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भरेषविन्द्रम --------------------------------------------भरेष्विन्द्रं सुहवं हवामहेऽंहोमुचं सुकृतं दैव्यं जनम्।अग्निं मित्रं वरुणं सातये भगं द्यावापृथिवी मरुतः स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/९
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ॐ सुत्रामाणं ---------------------------------------------पृथिवीं द्यामनेहसं सुशर्माणमदितिं सुप्रणीतिम्।दैवीं नावं स्वरित्रामनागसमस्रवन्तीमा रुहेमा स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/१०
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ॐ विश्वे यजत्रा ---------------------------------------अधि वोचतोतये त्रायध्वं नो दुरेवाया अभिह्रुतः।सत्यया वो देवहूत्या हुवेम शृण्वतो देवा अवसे स्वस्तये .स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/११
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अपामीवामय ---------------------------------------अपामीवामप विश्वामनाहुतिमपारातिं दुर्विदत्रामघायतः।आरे देवा द्वेषो अस्मद्युयोतनोरु णः शर्म यच्छता स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/१२
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ॐ अरिष्टः ----------------------------------------------स मर्तो विश्व एधते प्र प्रजाभिर्जायते धर्मणस्परि।यमादित्यासो नयथा सुनीतिभिरति विश्वानि दुरिता स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/१३
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देवासो अवथ ----------------------------------------यं देवासोऽवथ वाजसातौ यं शूरसाता मरुतो हिते धने।प्रातर्यावाणं रथमिन्द्र सानसिमरिष्यन्तमा रुहेमा स्वस्तये.स्वस्तये॥
ऋग्वेद १०/६३/१४
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ॐ स्वस्ति नः पथ्यासु --------------------------------मरतो दधातन.धन्वसु स्वस्त्यप्सु वृजने स्वर्वति।स्वस्ति नः पुत्रकृथेषु योनिषु स्वस्ति राये मरुतो दधातन॥
ऋग्वेद १०/६३/१५
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स्वस्ति रिद्धि ------------------------------------स्वस्तिरिद्धि प्रपथे श्रेष्ठा रेक्णस्वत्यभि या वाममेति।सा नो अमा सो अरणे नि पातु स्वावेशा भवतु देव गोपा.देवगोपा॥
ऋग्वेद १०/६२/१६
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