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जीवन-साथी से / परवीन शाकिर
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,
07:50, 16 जून 2010
हैरत करने वाले !
शायद तूने मेरी हँसी को
छुकर
छूकर
कभी नहीं देखा !
</poem>
अनिल जनविजय
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