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उन्होंने ऐसा कृत्रिम दूध बनाया, जो असली दूध को मात करे. उसे पीकर लोगों को लगा कि अब गाय-भैंस बकरी की जरूरत नहीं रही. फिर उन्होंने ऐसा मांस बनाया कि लोगों को जानवरों की जरूरत नहीं रही. फिर उन्होंने ऐसे रोबोट बनाये, जिनमें मनुष्य का एक भी दुर्गुण नहीं था और सद्गुण सारे थे. तो मनुष्यों की जरूरत भी नहीं रही. पानी, पक्षी, सूरज, चांद, तारे, कविता किसी की जरूरत नहीं रही. घृणा और प्रेम की जरूरत भी नहीं रही. पृथ्वी तक की जरूरत नहीं रही. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में घूमने वाले रोबोट में पता नहीं कहां से क्या गड़बड़ी आई कि फिर ब्रह्माण्ड की जरूरत भी नहीं रही.
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|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
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<poem>
उन्होंने ऐसा कृत्रिम दूध बनाया, जो असली दूध को मात करे. उसे पीकर लोगों को लगा कि अब गाय-भैंस बकरी की जरूरत नहीं रही. फिर उन्होंने ऐसा मांस बनाया कि लोगों को जानवरों की जरूरत नहीं रही. फिर उन्होंने ऐसे रोबोट बनाये, जिनमें मनुष्य का एक भी दुर्गुण नहीं था और सद्गुण सारे थे. तो मनुष्यों की जरूरत भी नहीं रही. पानी, पक्षी, सूरज, चांद, तारे, कविता किसी की जरूरत नहीं रही. घृणा और प्रेम की जरूरत भी नहीं रही. पृथ्वी तक की जरूरत नहीं रही. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में घूमने वाले रोबोट में पता नहीं कहां से क्या गड़बड़ी आई कि फिर ब्रह्माण्ड की जरूरत भी नहीं रही.