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Kavita Kosh से
सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से
सो अपने आप को बरबाद करके कर के देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुग्नू जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी
सो अबके दोनों ही चालें बदल के देखते हैं
यह कौन है सरे सर-ए-साहिल कि डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं