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|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
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<poem>
दर्द में उम्र बसर हो तो गजल होती है
या कोई साथ अगर हो तो गजल होती है

तेरा पैगाम मगर रोज कहाँ आता है
तेरे आने की खबर हो तो गजल होती है

यूँ तो रोते हैं सभी लोग यहाँ पर लेकिन
आँख मासूम की तार हो तो गजल होती है

हिंदी उर्दू में कहो या किसी भाषा मे कहो
बात का दिल पे असर हो तो गजल होती है

गजलें अखबार की खबरों की तरह लगती है
हाँ तेरा ज़िक्र अगर हो तो गजल होती है
</poem>