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Kavita Kosh से
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हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहिण नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आपउम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गयी
तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यहाँ फिर तेरी याद भी गई
उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
इक गली की बात थी और गली गली गयी
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