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नीम रोशनी में. / मदन कश्यप

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(1)
नीम रोशनी में कुछ भी नहीं किया जा सकता
बातें कही और सुनीं तो जा सकती हैं
बतियाया नहीं जा सकता
कविता नहीं लिखी जा सकती
प्‍यार तो हरगिज नहीं किया जा सकता

नीम रोशनी में
अपने समय को भी नहीं देखा जा सकता
फिर इतिहास को देखने की तो बात ही बेमानी है

घुप्‍प अंधेरा हो
और कुछ भी न दिखे आंखों को
तो हाथ खोज लेते हैं दिशा
पांव ढूंढ लेते हैं रास्‍ता
कितनी खतरनाक है यह नीम रोशनी
सबकुछ दीखता है
पर कुछ भी साफ-साफ नहीं दीखता!

(2)
जब आदमी सिर्फ आवाजों के पीछे दौड़ने लगे
और रोशनी इतनी मद्धिम हो
कि पुकारने वाले छायाओं की तरह दिखें
तब किसी भी चीज को धुंधलाया जा सकता है
इतिहास को
विश्‍वास को
किसी भी चीज को

पीछे-पीछे भागते आदमी के साथ यह सुविधा है
कि वह सोचता हुआ नहीं होता !

(3)
सबसे पहले रोशनी धुंधली की
फिर पसीने की तरह इत्‍मीनान से पोंछ डाले
अपने चेहरे से खून के छींटे
और रक्‍त के फव्‍वारों को
इतिहास की ओर मोड़ दिया
वे सदी के सबसे चालाक हत्‍यारे हैं
उनका दावा है
उन्‍होंने दुनिया भर की बेहतरी के लिए की हैं
दुनिया भर की हत्‍याएं!
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