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Kavita Kosh से
अकसर पडोसियों को
चोर-उचक्का तक बना देती थी
बेशक! ऐसी थी सासू माँ कि
वह बहू के बनाए सामान नहीं,
उसे सहेज कर रखती थी[
पड़ोसियों की डाहती नज़रों से
हवा-बतास से, प्रेतिन छायाओं से,
घर आए मेहमानों का मुंह मीठा करने वाले
गुड़ और बतासों की तरह
या, नैहर से मिले जेवरों की तरह
माई के सर्पदंश से हुई मौत के पहले
वह उसकी सबसे बड़ी अमानत थी
खानदान की आन-बान थी
पुरखों के सत्कर्मों से अर्जित वरदान थी,
रामपियारे के यार-दोस्त
दुआर पर खड़े-खड़े
घूंघट से झांकती भौजी से
दे-चार बतकही ही कर पाते थे,
भौजी से आंखें मिलाकर हंसी-ठिठोली करना
रामपियारे की आँखें बचाकर छेड़-छाड़ करना
उन्हें कहां मयस्सर था,
माई ने तो बेजा निगाहों से बचाने
दुआरे की हवाओं तक को बरज रखा था
और गाय-गोरुओं के गोबर वह खुद इकट्ठे कर
भीतर रामदुलारी तक पहुँचा आती थी
जहां वह उपले पाठ-पाथकर
हाट-मेले के लिए बच्चों के झुनझुने-खिलौने
और रोज़मर्रा के सामान बनाकर
अपने रामपियारे की बरक़त बढाती थी