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जब सजी-संवरी रामदुलारी
सपनों की गठरी लिए अपने पीहर आई थी
और आन्खों आँखों में लबालब शर्म और
होठो पर छलकती मुस्कान की गगरी लाई थी,
उसने अपनी किलकारी-फिसकारी सब
घर की खुशी की वेदी पर चढा दिएदी,
उसके हाथों में गज़ब के कौशल थे
यों तो वह अंगूठा-छाप थी
भाजी, भात और भुर्ते
पूरे गांव में लोकप्रिय थे,
सनई की सुतली और बांस की फत्तियों फट्टियों से बने
पंखों, दोनों, चिक, चटाइयों और गुलदस्तों की नुमाइश
सासू मां टोले-भर लगा आती थी,