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मुझ को शिकस्ते शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुक्तसर मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया
वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं
फिरदौस--गुमशुदा का पता याद आ गया
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफ़ा का अहद--वफ़ा याद आ गया
मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम
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