भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कानपूर–9 / वीरेन डंगवाल

1,483 bytes added, 07:06, 25 जून 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>

दहकती हुई रासायनिक रोशनी में
बालू के विस्‍तार पर
सिर्फ रेंगता सा लगता है दूर से
एक सुर्ख ट्रैक्‍टर
सुनाई नहीं पड़ता
चींटियों सरीखे कई मजदूर
जो शायद ढो रहे हैं कुछ भारी असबाब
जैसे शताब्दियों से!
किरकिराती आंखों से देखता हूं
बनता हुआ गंगा बैराज

एक थकी हुई पराजित सेना के घोड़े
और देहाती पदातिक
उतरेंगे अभी
क्‍लांत नदी में रात के अंधेरे में बार-बार
बिठूर के टीलों भरे तट पर
किसी फिल्‍म में निरंतर दोहराये जाते
मूक दृश्‍य की तरह

इसी तट के पार
शुरू होते हैं
उद्योगपतियों के फार्म हाउस
और विलास गृह
778
edits